झारखण्ड के राजनीति में बड़ी हलचल; १४ साल के वनवास के बाद भाजपा में वापस आये बाबूलाल मरांडी

वैसे तो झारखण्ड में आमतौर पर दिल्ली की मीडिया की नजर नहीं जाती लेकिन १७ फरबरी को झारखण्ड की में जो हुआ वह झारखण्ड की राजनीति को हमेशा के लिए बदल देगा। रांची के प्रभात तारा मैदान में हजारों लोगों की भीड़ के सामने आज झारखण्ड के पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी अपने १४ वर्ष के वनवास को ख़तम करते हुए भाजपा में अपनी पार्टी जेवीएम का विलय कर दिया और भाजपा में शामिल हो गए। इस विराट समारोह में भाजपा अध्यक्ष ज.प. नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह और झारखण्ड के दो पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और अर्जुन मुंडा उपस्थित थे।

मरांडी का भाजपा में शामिल होने के कई मायने हैं। दिसम्बर में हुए झारखण्ड के चुनाव में भाजपा अपने वोट प्रतिशत में तो इजाफा किया लेकिन ८१ में से सिर्फ २५ सीटें जित पायी। इसका एक बड़ा कारण यह था की आजसू (आल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन), जो की एनडीए का घटक दल था, वो इस बार अलग से चुनाव लड़ी और दोनों एक दूसरे के वोट काटे; जिससे कांग्रेस और जेएमएम को फायदा हुआ। रघुवर दास जो की एक नॉन ट्राइबल सीएम हैं , उनसे झारखण्ड की जनता काफी नाराज थी; खासकर अनुसूचित जनजाति के लोग उनके मनमानिक रवैये से नाखुश थे। झारखण्ड में कहा यह भी जाता हे की उन्होंने सरयू राइ, जो की एक साफ़ सूतरी छवि के नेता मने जाते हैं , उनको अनदेखा किया और राज्य में भ्रष्टाचार पर काबू करने में असमर्थ रहे। इसी के चलते भाजपा को एक साफ़ सूतरी छवि वाली ट्राइबल नेता की बहुत ज्यादा जरुरत थी।

मरांडी एक पक्के भाजपाई हैं। जब झारखण्ड २००० में अलग से एक राज्य बना तब मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने। २००५ के चुनाव के बाद जब झारखण्ड ने त्रिशंकु विधानसभा चुनी तब पार्टी में खींचतान के चलते मरांडी के जगह अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। इसके बाद लगातार मरांडी और भाजपा के बीच में खींचतान चलती रही और वो २००६ में भाजपा से अलग हो कर अपनी नयी पार्टी जेवीएम का गठन किया। २००६ से ही उनकी पार्टी तक़रीबन १० फीसदी वोट पा रही हे। २०१४ में केंद्र में सरकार बनाने के बाद अमित शाह कई बार मरांडी को भाजपा में लेने की कोशिश कर रहे थे पर मरांडी माने नहीं। आखिरकार अब वो भाजपा में शामिल हुए।

अभी मरांडी के भाजपा से आने से भाजपा का वोटर बेस करीब ८-९ फीसदी बढ़ने वाला हे। झारखण्ड की जनता खास कर वनवासी लोग मरांडी के सीएम रहते हुए कार्यों को अभी भी सहराते हैं । बाबूलाल मरांडी की छवि काफी साफ़ सूतरी हे और वो खासा लोकप्रिय भी हैं।पर भाजपा मरांडी को बस इसलिए नहीं लायी की वो केवल झारखण्ड में भाजपा को मजबूती देंगे।दरअसल मरांडी के आने से भाजपा को एक बहुत मजबूत आदिवासी चेहरा मिलेगा जिससे उसको झारखण्ड समेत ओडिशा, छत्तिश्गढ़ और बंगाल में फायदा मिलेगा। इन सभी राज्यों के आदिवासियों का जीवन शैली करीब करीब एक हे और सोच भी तक़रीबन मिलती जुलती है। संघ आदिवासिओं के दिल में अपना पैठ बनाने में खासा प्रयासरत हैं क्यों की आदिवासी उसके हिन्दू राष्ट्र के धेय के एक अभिन्न अंग हैं। आदिवासी क्षेत्रों में लगातार हो रहे धर्मान्त्रिकरण संघ के लिए चिंता का विषय बना हुआ हे। मरांडी के आने से संघ के वनवासी कार्यक्रमों को ज्यादा अच्छा प्रतिक्रिया मिलेगा और एक बेदाग आदिवासी छवि के साथ भाजपा देशभर के आदिवासियों में अपना पैठ और मजबूत करेगी।

मरांडी का भाजपा में आना यह दर्शाता हे की भाजपा का आलाकमान देर से ही सही राज्यों में मजबूत नेताओं की जरुरत को समझने लगी हे। यह देश की राजनीति में एक बहुत बड़ी घटना हे जिसके दूरगामी परिणाम दिखने वाले हैं। प्रत्येक भाजपाई जो झारखण्ड की राजनीति को फॉलो करता हे वह जरूर चाह रहा होगा की मरांडी भाजपा में वापस आएं। यह कदम भाजपा के भविष्य के लिए बहुत जरुरी और महत्वपूर्ण हे। भाजपा हमेशा ही झारखण्ड में एक मजबूत पार्टी हे परन्तु सत्ता में आने में हमेशा चूक जाती हे। मरांडी के आने से भाजपा को झारखण्ड के साथ साथ झारखण्ड से सटे ओडिशा और छत्तिश्गढ़ में भी काफी फायदा मिल सकता हे।

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