शादी में कम खर्च करें तो मुश्किल, ज़्यादा खर्च तो आफत, और यही संबंध टूटने का कारण बनता है, करे तो क्या करे जानिए…

आज कल शादियों में लोग दिखावे के लिए बहुत पैसा खर्च करते है. एक ही शादी में दो तीन चार बार पार्टी की जाती है. ये मानो की आज कल रिवाज ही बन गया है. शादी में कुछ अलग और सबसे भिन्न दिखने के लिए महँगी महंगी वस्तुओं का उपयोग करते है. उनमे जैसे महंगे आभूषण और महंगे कपडे जिनकी कीमत आभूषण के बराबर ही होती है. वो सब उपयोग करते है. अपनी शादी को सबसे अच्छी बनाने के लिए जो की सही नहीं है.

शादी के लिए कितना खर्च करना पड़ता है ये सब लोग जानते है. परन्तु अपनी अपनी सीमा से ज़्यादा खर्च करना लोगो की समालोचना का सामना करना पड़ता है. हम अगर ये सोचते है की शादियों में ज़्यादा व्यय करने से शादियां टिकी रहती है तो ऐसा मानना एक भ्रान्ति मात्र है ये कोई जरुरी नहीं है.

शादी हमेशा अपनी आय व्यय की सीमा ( बजट ) को ध्यान में रख कर फिर उसपे पैसा खर्च करना चाहिए ना की सिर्फ दिखावे के लिए या ये सोच के की आजकल यही ट्रैंड चल रहा है तो हम भी वही करें.

एक सर्वे किया गया शादियों से संभंधित :

सर्वे में पाया की पिछले दशक में जिन लोगो ने शादियां की है उनपे उन्होंने कितना पैसा खर्च किया और कितना किस किस वस्तुओ पे किया गया उसने वो सबके व्यय के बारे में जानकारी ली गयी. और सर्वे के अनुसार पाया की बहुत अधिक पैसा खर्च करने वाले लोग अपनी शादीशुदा ज़िंदगी अच्छे से ख़ुशी ख़ुशी जी रहे हैं. और काम पैसा खर्च करने वाले लोग ज़िंदा दिली से नहीं जी पा रहे है. उनको उनके जीवन जीने के तरीके में कुछ कमी सी लग रही है.

कुछ लोगो का ये मानना है की शादी में पैसा कम खर्च करने से शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल नहीं चल पाती है. उनमे से वो लोगो का रेश्यो ज़्यादा है जिनके तलाक हो चुके है या वो एक दूसरे से अलग हो गए है, उन्होंने अपनी शादियों में मात्र ही पैसा खर्च किया है जो की १००००० रूपये से भी कम हो सकता है.

फिजूल खर्च ठीक नहीं सस्ती शादियां भी सफल होती है : शादियों में फ़िज़ूल खर्च सही नहीं होता है. सर्वे में कुछ ऐसे व्यक्तियो से भी मुलाकात हुई जिन्होंने अपनी शादियों में ज़्यादा दिखावा नहीं किया. ना पैसा ऐसे ही लुटाया हो फिर भी वो अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में खुश है. और उनको कोई शिकायत नहीं है उनकी शादी से, क्यों की उन लोगो का ये मानना है की अपने बजट से ज़्यादा पैसा अगर हम खर्च करते है शादियों पे तो हम लोग क़र्ज़ के भागीदार भी बन सकते है. क्यों की अगर क़र्ज़ या उधार पैसे लेकर शादियां की जाती है तो शादी के बाद क़र्ज़ उतारने का तनाव रहता है तो वसे भी फिर जीवन संतुष्ट नहीं हो सकता है और मानसिक स्तिथि एकाग्र नहीं हो पाती है.

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